hanuman krishna leela
हनुमान जी ने तोड़ा था सत्यभामा,सुदर्शन चक्र और गरुड़ तीनो का घमंड
दोस्तों अहंकार व्यक्ति के विवेक यानि की (सोचने-समझने की शक्ति) का नाश कर देता है। जब यही अहंकार भगवान् के भक्तो को घेरता है तब भगवान् स्वयं उनका अहंकार नष्ट करते है। दोस्तों ऐसी ही एक कहानी हे जिसमे भगवान् श्रीकृष्ण ने हनुमानजी की सहायता से, सत्यभामा ,गरुड़ और सुदर्शन चक्र का अहंकार नष्ट किया
एक बार भगवान् श्रीकृष्ण एक बार भगवान श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा को अपनी सुंदरता का, उनके वाहन गरुड़ को अपनी तेह गति का और अस्त्र सुदर्शन चक्र को सबसे बलशाली होने का अहंकार हो गया था
एक दिन श्रीकृष्ण द्वारिका में रानी सत्यभामा के साथ विराजमान थे और उनके निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी उनकी सेवा में उपस्थित थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने पूछा- हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम रूप में अवतार लिया था तब सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?
भगवान सत्यभामा की बातों का जवाब देते तभी गरूड़ ने पूछा : भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है। सुदर्शन भी कहा पीछे रहने वाला था और वह भी बोल उठा कि भगवान, मैंने बहुत से युद्धों में आपको विजय दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी ताकतवर कोई है? द्वारकाधीश समझ गए कि तीनों में अहंकार आ गया है।
भगवान मुस्कुराने लगे और सोचने लगे कि इनका अहंकार कैसे नष्ट किया जाए, तभी उनको एक युक्ति सूझी...वे जान रहे थे कि इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है। तब उन्होंने गरूड़ से कहा : हे गरूड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहो कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरूड़ भगवान की आज्ञा से हनुमान को लाने चले गए।
फिर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं मधुसूदन ने राम का रूप धारण कर लिया। तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा दी कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई भी प्रवेश न करने पाए। सुदर्शन भी भगवान की आज्ञा पाकर महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गया।
दूसरी तरफ गरुड़ ने हनुमान जी के पास जाकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए पधारे हैं। आपको बुलाने की आज्ञा है। आप मेरी पीठ पर बैठ जाइये मैं आपको शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। हनुमान जी ने विनम्रता से गरूड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब तक पहुंचेगा, पर मेरा कार्य तो पूरा हो गया। मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरूड़ शीघ्रता से वापस द्वारका की ओर उड़ चले।
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लेकिन जैसे ही वह महल में पहुंचे तब उनको अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, महल में पहुंचकर गरूड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने उपस्थित हैं। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया। तभी श्रीराम के रूप में श्रीकृष्ण भगवान ने हनुमान से कहा कि तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान जी ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे कौन रोक सकता है? इस चक्र ने रोकने का प्रयास मात्र किया था इसलिए इसे अपने मुंह में दबा कर मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें प्रभु । भगवान मंद-मंद मुस्कुराने रहे थे
अंत में हनुमान ने हाथ जोड़कर श्रीराम प्रभु से प्रश्न किया, हे प्रभु! मैं आपको तो पहचानता हूं आप ही श्रीकृष्ण के रूप में मेरे राम हैं, लेकिन आज आपने माता सीता के स्थान पर यह कौन दासी आपके साथ विराजमान है
अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने वाला था। उन्हें जो सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और उन्होंने भगवान के चरणों में दंडवत प्रणाम किया और क्षमा मांगी। भगवान ने अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त हनुमान द्वारा ही दूर किया।
परमात्मा कभी अपने भक्तों में अभिमान रहने नहीं देते| अगर भगवान् श्रीकृष्ण सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र का घमंड दूर न करते तो वे तीनो उनके के निकट रह नहीं सकते थे... और परमात्मा के निकट वही रह सकता है जो 'मैं' और 'मेरा' से रहित है
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