raksha bandhan ki katha

रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है



नमस्कार दोस्तों आपके माता पिता,गुरुदेव,भगवन और इष्ट देव सभी को मेरा प्रणाम

रक्षाबंधन केवल धागों का नहीं बल्कि विश्वास और प्यार का त्यौंहार है इस पर्व के पीछे कई पौराणिक कथाये प्रचलित है जैसे राजा बलि और लक्ष्मी जी की कथा और देवराज इंद्र और इंद्राणी की कथा और देवराज इंद्र और इंद्राणी की कथा

पहली कथा

एक समय राजा बलि देवताओं के स्वर्ग को जीतने के लिए यज्ञ कर रहा था। तब देवराज इंद्र ने विष्णुजी से प्रार्थना की कि वे राजा बलि से सभी देवताओं की रक्षा करें। इसके बाद श्रीहरि वामन अवतार लेकर एक ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। ब्राह्मण ने बलि से दान में तीन पग भूमि मांगी। बलि ने सोचा छोटा सा ब्राह्मण है, तीन पग में कितनी जमीन ले पाएगा!! ऐसा सोचकर बलि ने वामन को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया।

ब्राह्मण वेष में श्रीहरि ने अपना कद बढ़ाना शुरू किया और एक पग में पूरी पृथ्वी नाप ली। दूसरे पग में पूरा ब्राह्मांड नाप लिया। इसके बाद ब्राह्मण ने बलि से पूछा कि अब मैं तीसरा पैर कहां रखूं? राजा बलि समझ गए कि ये सामान्य ब्राह्मण नहीं हैं। बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया। ये देखकर वामन अवतार प्रसन्न हो गए और विष्णु स्वरूप में आकर बलि से वरदान मांगने के लिए कहा।


राजा बलि ने वरदान के फलस्वरूप भगवान विष्णु से कहा कि आप हमेशा मेरे साथ पाताल में रहें। भगवान ने ये स्वीकार कर लिया और पाताल लोक चले गए। जब ये बात देवी महालक्ष्मी को मालूम हुई तो वे भी पाताल लोक गईं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उसे भाई बना लिया। इसके बाद बलि ने देवी से उपहार मांगने के लिए कहा, तब लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया। राजा बलि ने अपनी बहन लक्ष्मी की बात मान ली और विष्णुजी को लौटा दिया।

मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा रहा है। हर साल बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं और भाई बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं।

दूसरी कथा

भविष्य पुराण के अनुसार एक बार दैत्यों तथा सुरों में युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध लगातार बारह वर्षों तक चलता रहा। हालत यहाँ तक आ गए की देवराज इंद्र की हार निश्चित दिख रही थी

इंद्र की ऐसी अवस्था को देख कर इंद्र की पत्नी सची से रहा नहीं गया और उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना करके इसका समाधान माँगा। तब भगवान विष्णु ने एक धागा सची को प्रदान किया और उसे इंद्र की कलाई पर बांधने को कहा!!

सची ने वैसा ही किया और तब रक्षाबंधन' के प्रभाव से दैत्य भाग खड़े हुए और इंद्र की विजय हुई। राखी बाँधने की प्रथा का सूत्रपात यहीं से होता है

तीसरी कथा

महाभारत काल में द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण को लेकर भी एक कथा मिलती है एक बार जब भगवान श्रीकृष्ण ने  शिशुपाल को उसके अपराधों के लिए जब दंड दिया तब उन्हें थोड़ी चोट लग गयी और उनकी ऊँगली से खून बहने लगा तब द्रौपदी ने अपनी साडी फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बाँधा था तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी को रक्षा का वचन  दिया था और चीर हरण के समय उन्होंने अपना वचन भी निभाया था

धन्यवाद।


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