ganesh chauth ki katha
गणेश चौथ की कथा
नमस्कार दोस्तों आपके माता पिता,गुरुदेव,भगवन और इष्ट देव सभी को मेरा प्रणाम
गणेश चतुर्थी व्रत भादवे महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। जो बारह महीने की चतुर्थी का व्रत रखते है वे इसी चतुर्थी से चौथ व्रत की शुरुआत करते है। इस दिन गणपति की मूर्ति स्थापित की जाती है और 10 दिन बाद अनंत चौदस के दिन मूर्ति विसर्जन किया जाता है
अन्य चौथ व्रतों की तरह इस चतुर्दशी पर चन्द्रमा के दर्शन नहीं किये जाते। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि आज चन्द्र दर्शन करने से कलंक लगता है। इसके लिए एक कथा प्रचलित है।
एक बार धन के देवता कुबेर को अपना खजाना देखकर बहुत अभिमान हो गया कि मैं दुनिया में सबसे ज्यादा धनवान हूं। तब उन्होंने सोचा कि मुझे अपने धन का प्रदर्शन करना चाहिए। यही सोचकर उन्होंने एक दिन शिव जी को अपने महल में खाना खाने का न्योता दिया शिवजी उनकी मंशा समझ गए और उन्होंने कुबेर का घमंड दूर करने का निश्चय किया।
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उन्होंने कुबेर से कहा कि मैं तो आपका आमंत्रण नहीं स्वीकार कर पाऊंगा पर आप कहे तो मैं गणेश को अपने स्थान पर भेज सकता हूं कुबेर जी ने सोचा कि त्रिलोकीनाथ नहीं तो उनका पुत्र ही सही मुझे तो अपना वैभव दिखाना है कुबेर जी गणेश जी को लेकर अपने महल गधमादन पर्वत पर चले गए। कुबेर जी का मुख्य उद्देश्य वहाँ गणेश जी को अपना वैभव दिखाना था अतः अपने महल में पहुंचते ही कुबेर जी हर समय गणेश जी को अपना ऐश्वर्य दिखाने लगे।
खाना खिलाते समय भी सोने के बर्तनों में नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गए गणेश जी सब समझ गए उन्होंने कुबेर जी को सबक सिखाने के लिए जो भी उनके यहां खाना बनाया गया वह पूरा खा लिया उसके बाद फिर और मांगने लगे तो कुबेर जी ने उन्हें जो भी उनके पास रखा हुआ भोजन फल इत्यादि वह भी परोस दिया परंतु गणेश जी ने वह सारा खाना भी खा लिया फिर भी उनकी भूख शांत नहीं हुई और वे और भोजन मांगने लगे। अंत में कुबेर जी को समझ आ गया कि जब भूख लगती है तो कोई धन-दौलत वैभव काम नहीं आते और उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी और फिर कभी अभिमानवश ऐसा कुछ ना करने का वचन दिया
गणेश चौथ के दिन चंद्रमा के दर्शन क्यों नहीं करते
अब गणेश जी वहां से चले उनका वाहन मूषक जब उन्हें बैठा कर ले जा रहा था तो वह अपना संतुलन नहीं बना पा रहा था और उसके कारण रास्ते में एक बार गणेश जी उसके ऊपर से फिसल गए और नीचे गिर गए।
गणेश जी का चेहरा हाथ पाव और कपड़े गंदे हो गए गणेश जी ने आसपास देखा और सोचा चलो किसी ने देखा नहीं पर उसी समय उन्हें हंसने की आवाज आयी और फिर से इधर-उधर देखा पर फिर भी कोई नहीं दिखा तो उन्होंने आकाश मार्ग पर देखा तो वहां चंद्रमा जी उन्हें देख कर हंस रहे थे उन्हें इस तरह हंसता देख गणेश जी को क्रोध आ गया और उन्होंने चंद्रमा जी को श्राप दे दिया कि आपको अपने सुंदर रूप पर बहुत अभिमान है आपका यह रूप नहीं रहेगा
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श्राप मिलते ही चंद्रमा की कांति क्षीण हो गई और वह कांति हीन हो गए यह देखकर चंद्रमा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह गणेश जी से क्षमा मांगने लगे गणेश जी का गुस्सा तब भी शांत नहीं हुआ तब चंद्रमा जी ने उनसे बार बार क्षमा याचना की तब धीरे-धीरे गणेश जी का गुस्सा कम हुआ तो उन्होंने चंद्रमा से कहा कि आपका श्राप पूर्ण रुप से खत्म तो नहीं होगा और महीने में 1 दिन तो आप पर श्राप का पूर्ण असर रहेगा उस दिन आप किसी को दिखाई नहीं देंगे और उसके बाद रोज धीरे-धीरे आपकी कलाएं बढ़ती जाएगी और पूर्णिमा के दिन आप अपने पूर्ण रूप में दिखाई देंगे और साथ यह वरदान दिया कि हर चतुर्थी पर मेरी पूजा के साथ आप की पूजा भी की जाएगी पर क्योंकि आज गणेश चतुर्थी है तो हर वर्ष आज के दिन यदि कोई आप को देखेगा तो वह कलंक का भागी बनेगा तब से हर गणेश चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन नहीं किए जाते
बोलो गणेश जी महाराज की जय
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