krishna janmasthami story in hindi

कृष्ण जन्माष्ठमी की कथा 



नमस्कार दोस्तों आपके माता पिता,गुरुदेव,भगवन और इष्ट देव सभी को मेरा प्रणाम

दोस्तों भगवान श्री कृष्ण हमारे आराध्य देव है और लगभग हर घर में किसी न किसी रूप में चाहे बाल रूप हो या राधा जी के संग युगल रूप हो भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है भादपद्र महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इस पोस्ट में जन्माष्ठमी के शुभ अवसर पर हम आपको भगवान श्रीकृष्ण की जन्म संबंधी कथा सुनाएंगे

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'द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके अत्याचारी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी से हुआ था।

एक समय कंस अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुंचाने जा रहा था। तभी अचानक रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़ा प्रेम करता है, वही तेरा काल है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा। वह तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उतारू हो गया।

तब देवकी ने कंस से विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जितनी भी संताने जन्म लेंगी, उन सभी को मैं तुम्हे सौंप दूंगी। इन्हे मारने से क्या लाभ है?' कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।

वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरेदार बैठा दिए गए। उसी समय वृन्दावन में नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।

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उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ भी नहीं सिर्फ 'योग-माया' थी।

जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान विष्णु प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जिस कन्या ने जन्म लिया है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण सही नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे, जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे और उफनती यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।'

उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए और भी सब कुछ पहले के जैसा ही हो गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर मार देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।'

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आगे चलकर इसी बालक ने कंस का वध किया और यह बालक बहुत से अलग अलग नामों से प्रसिद्ध हुआ और इन्होने धर्म की पुनर्स्थापना की।

यह है कृष्ण जन्म की कथा।

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धन्यवाद।

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